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कच्चे दीये बना कर बैठ गई/कवि आकिब जावेद/Diwali par kavita kachche diye

 Deepawali par kavita 

 दीये 

कच्चे दीये बना कर बैठ गई
वो उम्मीद सज़ा कर बैठ गई!
मेरी दीवाली भी रोशन होगी
वो भी आस लगाकर बैठ गई!

कोई न आया दिये लेने पास
वो बहुत  हतास और निराश
कैसे  खुशियाँ  आयेगी पास
वो निराश - उजागर बैठ गई!

रंग  बिरंगी  सी है दुनियाँ
यहाँ  किसी  की फ़िक्र कहाँ
अपना- अपना देखते सब
किसका दामन भरा यहां।

मासूम उमर सुख पायेगी
मेरी माँ दीये बेच के आएगी!
हमें भी नए बसन दिलाएगी
हमे खूब पकवान खिलाएगी!

साब ले लो कच्चे दिए माँ के
कई सपनो को बेच रही है ये!
दीप घर में लाओ मेरी माँ के
धूप में परिश्रम कर रही है ये!

आकिब जावेद (Aakib_Javed)
स्वरचित/मौलिक

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