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जीव में शिव/bhagvan shiv/समीर उपाध्याय

 शीर्षक: जीव में शिव

कितना आश्चर्य?????
देवालय में नीर्जिव पत्थर को स्थापित कर
उसमें जीव का संचार कर दिया और
उसकी पूजा करने वाला खुद
प्राण हीन
विचार हीन
संवेदन शून्य बन गया!!!
इसलिए
मैं ना मंदिर जाता हूं
और ना पत्थर की पूजा करता हूं।
मैं ना व्रत और जप करता हूं
और ना उपवास रखता हूं।
मैं ना तीर्थाटन करता हूं
और ना पवित्र नदियों में स्नान करता हूं।
मैं मानव हूं
और मानव के दिल की गहराई तक जाकर
उसकी संवेदना का खुद एहसास करता हूं।
जब मै किसी
अनाथ, लाचार, विवश, मजबूर बच्चे को देखता हूं
तब उसकी मासूम हंसी और निर्दोषता में
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
जब मैं किसी
मेहनतकश किसान को देखता हूं
तब उसके पसीने से लथपथ और श्रम श्लथ शरीर में
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
जब मैं किसी
मृत्यु के कगार पर खड़े
नि:सहाय और दर्द से पीड़ित वृद्धों को देखता हूं
तब उनकी जिजीविषा में
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
जब मैं किसी
वृद्धाश्रम में संतान द्वारा तिरस्कृत वृद्धों को देखता हूं
तब उनके चेहरों के पिछे छिपे दर्द में
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
जब मैं किसी बेबस विधवा स्त्री के 
आंसुओं को देखता हूं
और सांत्वना के दो शब्दों से
उसका हौसला बुलंद होते देखता हूं तब उसमें 
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
जब मैं भूख से पीड़ित किसी भिक्षुक को देखता हूं
और उसे पेट भर खाना खिलाने के बाद 
उसके चेहरे पर तृप्ति का भाव देखता हूं तब उसमें
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
जब मैं किसी घायल पशु या पक्षी को देखता हूं
तब उसकी दर्द भरी पुकार में
परम तत्व के दर्शन करता हूं।
ईश्वर सिर्फ़ पत्थर की मूर्ति में नीहित नहीं है।
ईश्वर व्यापक शब्द है।
ईश्वर
प्रेम, अनुकंपा, सेवा, समर्पण, करूणा, ममता
सहानुभूति और समत्व का अभिधान है।
मैं मानव हूं
संवेदना से सभर हूं।
मैं जीवन में ही
शिव के दर्शन करता हूं।
प्रत्येक जीव में शिव का दर्शन
सब धर्मों का सार है।

समीर उपाध्याय
मनहर पार्क:96/A
चोटीला:363520
जिला:सुरेंद्रनगर
गुजरात
भारत
9265717398

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