कलम लाइव पत्रिका

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May 31, 2020

ग़ज़ल Ghazal सागर समीक्षित

Ghazal 

हमारा मूड कुछ अच्छा नहीं था 
सो हमने फिर उसे रोका नहीं था

मरासिम मिट गया खुद ही हमारा
क़सम से! दरमियां झगड़ा नहीं था

किसी की आंख में आंसू नहीं थे 
किसी की ख़्वाब में तारा नहीं था 

न वो दुनिया की अव्वल माशूक़ा थी
इधर का इश्क़ भी पहला नहीं था 

अब उसका फ़ोन नंबर खो गया है 
वो वैसे भी कभी उठता नहीं था 

हवा जैसी हक़ीक़त थी मोहब्बत 
किसी ने भी उसे देखा नहीं था 

बहुत अच्छे हैं बाक़ी लोग सारे 
चलो हां ठीक ! मैं अच्छा नहीं था

- सागर समीक्षित 
May 31, 2020

बहुत कुछ अनकहा bahut kuchh Ankaha अंजू अग्रवाल

बहुत कुछ अनकहा

जिंदगी में कई ख्वाब
कई सपने और ढेर सारी उम्मीदें
आंखों की पलकों के नीचे दबी
हज़ारों आशाएं
अधरों के बीच से
निकलती हर रोज दुआएं
कितना कुछ कहती है ....! 
बयां करती तकदीर
हाथों की हथेलियों की रेखाएं
अचेतन मन में प्रस्फुटित
लाखों आकांक्षाएं
हर्ष से उल्लासित
मन की कोरी कल्पनाएं
कितना कुछ कहती है......! 
पदचाप से निशान छोड़ती हुई
यादों के बरक्स जीवन की क्रियाएं 
प्रेम और स्नेह से परिपूर्ण
रिश्तों की नई गांठे
हर पल हर क्षण
दौड़ती हुई 
इन्द्रिय परिकल्पपनाएं
कितना कुछ कहती है ...! 
डूबकर किसी एक गठजोड़ में
पूरी करती हुई प्रतीत होती
सारी जीवन की आशाएं
हर राह पर खुद को मजबूत समझती
कैसी ये दिमाग की महत्वाकांक्षाएं
कितना कुछ कहती है.....! 
दूर तलक बैठ कर कहीं
देख फलक के इशारों को
प्रकृति से बात करने की
उत्सुकता से भरी ये रसनाएं
घन घोर अंधेरे में भी तलाशे
काले कागज़ पर लिखी
स्याही से चंद लाइनें
कितना कुछ कहती है....! 
वक़्त नहीं किसी के पास इतना
कर ले जो दीदार अपना
हर वक़्त दूसरों में तलाशे
जीने की खुशनसीबीयां
कितना कुछ कहती है ....!


अंजू अग्रवाल (शिक्षिका और कवयित्री)
अलवर ( राजस्थान)

May 31, 2020

उम्मीद का दामन थाम के. Ummid ka daman tham ke

उम्मीद का दामन थाम के


ज़रूरत है, आशीर्वाद और प्रणाम के ,
मूल्य है न आराम के  ।
लक्ष्य पर रहो उम्मीद का दामन थाम के ,
अभी करो, मत कहो कि ये काम है शाम के ।।

वर्णन करो सीता पति राम के ,
राधा प्रिय श्याम के ।
और रोशन करो अपने नाम के ,
जो भी करना है वह करो 
उम्मीद का दामन थाम के ।।

उज्जवल करो अपना घर परिवार और ग्राम के ,
पेड़ लगाओ , अमरूद और आम के ।
गरीबों का मदद करो, ज़रूरत है न काशी, मथुरा धाम के ,
यूं मंजिल तक चल जाओगे,
उम्मीद का दामन थाम के ।।

® रोशन कुमार झा 
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , 
कोलकाता  भारत
May 31, 2020

माँ पर कविता Maa par Kavita अदिती जोशी

मां

क्या लिखूं उस शख्स के बारे?
जिसने खुद मेरी शख्शियत को लिखा।
वो मां है और मां होने का मकसूद जानती है।
तुम्हे तुमसे बेहतर वो पहचानती है।
और उसके बिना तुम्हारे जीवन का क्या वजूद ???
अपनी जान पर खेलकर वो ही तो तुम्हें जीवन दान देती है।
वो मां है और मां होने का मकसूद जानती है।
खुद भुखे रहकर पेट तुम्हारा वो पालती है।
वो मां है और मां होने का मकसूद जानती है।
हजारों बुरी बलाएं भी उसकी एक दुआ के आगे हार मानती हैं।
वो मां है और मां होने का मकसूद जानती है।
और दुनिया की परवाह नहीं उसे 
वो तो बस तुम्हे अपनी दुनिया मानती है। 
वो मां है और मां होने का मकसूद जानती है।

अदिती जोशी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
May 30, 2020

हमीद कानपुरी, ग़ज़ल ghazal

ग़ज़ल


बर्क़ रफ्तार से फिर तुम भी सुधर जाओगे।
साथ जब  नेक मिलेगा  तो संवर  जाओगे।

सरकशी पर‌  है उतारू  यहाँ की तेज़ हवा,
एक होकर  न  रहोगे  तो बिखर  जाओगे।

कारवां  देर तलक फिर  न रुकेगा हरगिज़,
एक  ही   ठौर  जो   तादेर  ठहर‌  जाओगे।

शे'रगोई   के उसूलों   की ज़रा  कद्र  करो,
बह्र  में  शे'र  कहोगे   तो निखर  जाओगे।

दौरे जम्हूर  में फिर पा  न सकोगे  मंज़िल,
आमजनता कीजो नज़रों सेउतर जाओगे।

हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179, मीरपुर, कैण्ट, कानपुर-208004
May 30, 2020

हार मानी नहीं haar maani nhi

हार मानी नहीं 

राजा है और रानी है
हैं हम प्रजा की कहानी  ।
कुछ भी होते तो हमने कभी न हार मानी ,
कहो मिलकर कि हम हैं हिन्दुस्तानी ,ओ
हम है हिन्दुस्तानी ।।

प्यासे रहकर प्यासो को देते हैं हम पानी ,
सोचे न समझे न कि मेरी होगी कोई हानी ,
क्योंकि हम करते हैं मेहरबानी, हां ...
हम अभी हार नहीं है मानी ।।

यही एक से एक  बढ़कर हैं ज्ञानी ,
हम रोशन लिखें है गीत हैं माँ सरस्वती की वाणी....
तब लिखें जब की है मां मुझ पर मेहरबानी ,
कहो हम है हिन्दुस्तानी , हां हां हम है हिन्दुस्तानी ।।

बन रहें हैं और यही से बने हैं एक से एक विज्ञानी ,
लेते न देते हैं हम कहलाते हैं हम दानी ।
यही हैं हमारी मेहरबानी , हां हां हमने कभी न हार मानी ।
तब कहलाते हैं हम हिन्दुस्तानी , ओ हम... है हिन्दुस्तानी ।।
                                           
 रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
May 30, 2020

नारी तुम श्रद्धेय हो Naari tum shradhey ho

नारी तुम श्रद्धेय हो

उठो!,
अपने दूध से सींचकर,
अपने लाल को इंसान बना दो।
थक तुम सकती नहीं,
रूक तुम सकती नहीं,
हार  सकती नहीं तुम,
अपने तेज से अपने लाल को,
ओजस्वी बना दो।
नहीं कुछ भी असम्भव तुम्हारे लिए,
कर गुजरने की चाह में,
कुछ नहीं नामुमकिन तेरे लिए,
अपने कर्मों से ,
अपने लाल को अजेय बना दो।
इतिहास गवाह है,
जब जब आन पड़ी,
तुम पर विपदा भारी,
तुमने मिटाने में उसके,
लगा दी शक्त  सारी,
अपने विश्वास से,
अपने लाल को,जीना सीखा दो।
नारी तुम श्रद्धेय हो।
अपनी श्रद्धा से ,
अपने युग को अमर बना दो।
रेखा पारंगी।
बिसलपुर पाली।
राजस्थान।

May 30, 2020

अम्फान तूफान तेरी खोफ़ alfan tufan teri khof

अम्फान तूफान तेरी खोफ़ 

ये खोफ़ झूठी सिर्फ दी जा रही है
अम्फान तूफान रूप दिखला रही है

बड़ी जटिल समस्या ये खोफ़ है
अभी महासागर से नदी घबरा रही है

प्राणी को न, रेलगाड़ी बांध रखी है
पर अम्फान रेल न घर बाड़ी उड़ा रही है

पशु पक्षी चुपचाप क्यों देख रही हैं
विज्ञान न, प्रकृति जोर हवा चला रही है

मानव घर में अम्फान की खोफ़ से
पर घोंसले में कितने बच्चें पला रहीं हैं

रोशन घर में बाहर न कोई खड़ा रही है ,
क्योंकि अम्फान अपना खोफ़ दिखला रही है ।

  रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता
मो :- 6290640716
May 30, 2020

ये हैं प्रस्थान .....रोशन कुमार झा

ये है प्रस्थान

जब तक ये जान है ,
तब तक ये शान है ।
बदलता इंसान है ,
बदलते स्थान है ,
यही तो यारों प्रस्थान है ।।

हम रोशन भक्त,  और दूर भगवान है ,
सैनिक और किसान है ।
कला और विज्ञान है ,
वहां तक पहुंचना ही तो प्रस्थान है ।।

कुछ अभियान है ,
उसमें कुछ देना योगदान है ।
गुरुओं का दिया हुआ ज्ञान है ,
उस ज्ञान से जो आगे बढ़े
वह भी तो एक प्रस्थान है ।।

ये प्रकृति और नीला आसमान है ,
हम हिन्दुस्तानी, विश्व का प्यारा देश हिन्दुस्तान है ।
कल मरते ही जाना हमें श्मशान है ,
जन्म से मृत्यु तक जाना भी एक प्रस्थान है ।।

® रोशन कुमार झा 
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता  भारत
May 30, 2020

ऋषभ तोमर गजल ghazal

गजल


जिनकी राहों में पलके बिछाये है हम
सारी गजलों में उनको ही गाये है हम

उनकी तस्वीर की कुछ जरूरत नही
उनको ह्रदय में अपने छिपाये है हम

शायद कपड़े सुखाने को आएगी वो
छत पे सुबहा से नजरें गढ़ाये है हम

वो प्यार से बोलेगी प्यारे ढाई आखर
आश ये ही तो दिल मे लगाये है हम

आँखो में सांसो में धड़कनों में वो ही
हर जगह सिर्फ उसको बसाये है हम

उनकी राहों में अंधियारे न आने पाये
इसलिए मीत खुद को जलाये है हम

है ऋषभ अदना जुगनू वो है चाँद सा
बस तभी प्यार दिल मे दबाये है हम
ऋषभ तोमर
अम्बाह मुरैना
May 30, 2020

एक पेड़ लगाओ ek ped lagao

एक पेड़ लगाओ 

आओ जी आओ
हरियाली लाओ
एक पेड़ लगाओ ।
है पर्यावरण अपना
इसे बचाओ ‌।।

                   फल खाओ
                   जल लाओ
                   जल देकर पेड़ बचाओ
                   और अपना ये वातावरण हंसाओ ।।

हम रोशन और आप मिलकर
बदलाव लाओ ,
अपने जन्मदिन के दिन
हर वर्ष एक पेड़ लगाओ ।
हरी भरी पेड़ पौधे से घर द्वार बाड़ी चमकाओ ,
एक पेड़ लगाकर इस कविता को गाओ ।।

            आओ जी आओ ,
            पड़े ज़मीन में हल चलाओ
            कोई पेड़ , तो कोई जल लाओ ।
            पेड़ लगाकर  " वृक्षारोपण " की विधि दर्शाओ ।।

अपने करो घर परिवार और समाज से करवाओ ,
वृक्षारोपण की अभियान चलाओ ।
आज लगाओ कल सुख पाओ ,
आओ जी आओ, एक पेड़ लगाओ ।।

वृक्ष की महत्त्व खुद समझो और दूसरों को समझाओ ,
न समझे तो बार - बार बतलाओ ।
बतलाकर खुद भी और उससे भी एक पेड़ लगाओ ,
और क्या आप भी पर्यावरण रक्षक कहलाओ ।।
     रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता
May 30, 2020

मौन हूँ अनभिज्ञ नहीं maun hu anabhigy nhi

मौन हूँ अनभिज्ञ नहीं

मौन हूँ , तो मैं अनजान नहीं ,
चुप हूँ, तो क्या मेरा पहचान नहीं ।
कोरोना तेरे कारण खुला हुआ बाज़ार
और दुकान नहीं ,
तू कोरोना जायेगा, तुम से डरने वाला
हमारा हिन्दुस्तान नहीं ।

प्रेम है , अभिमान नहीं ,
व्यर्थ हमारा ज्ञान नहीं ।
पीछे हटा मेरा कला और विज्ञान नहीं ,
तू जायेगा कोरोना
इसलिए मौन हूं , पर अज्ञान नहीं ।

हूं हम रोशन बेरोज़गार पर चीन तुम्हारे जैसा
हम भारतीय बेईमान नहीं ,
मार - काट करने पर हमारा ध्यान नहीं ,
तू क्या समझा कोरोना ,
तुम्हारे भगाने के लिए कोई विद्वान नहीं ।।

बन रही है सुझाव चुपके से , अभी कहीं भान नहीं ,
इसलिए मौन हूं , तो क्या मेरे होंठों पर मुस्कान नहीं ।
बंद है भारत दुनिया के साथ तो क्या हुआ
तू कोरोना महान नहीं ,
कष्ट दूर करेंगे प्रभु , तू क्या समझा हम मानव के
लिए भगवान नहीं ।

  रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
May 30, 2020

सूनापन samapan

सूनापन
कंक्रीट की सड़कें बेताब है
ना पदचापों की आहट
ना धुंए की गरमाहट
मातम सा बना रही हो जैसे
खुदकी मौनता से
चर मर की आवाज से परे
खुली है, पर फिर भी बन्द है
सांसे थमी हो जैसे आवागमन में........!
ये बहुमंजिला इमारतें
बतियाती है दीवारों से
पूछती रहती है दीमकों का पता
अजीब सी घुटन लिए
ढूंढ़ती है मकड़ियों को
बन्द किए हुए खुदको
एसी से लदी हुई खिड़कियों में........!
स्कूल और कॉलेज की बसें भी
खड़ी है डटकर एक जगह
खाली सीटों पर फिर से आवाज सुनने को
बजाती है हॉर्न रोज 
इंतजार की घड़ियां बिताने को
स्पर्श को करती है महसूस
और वार्तालाप भी 
तकती है राहें प्रतिदिन
निहारती है पथ, रोज गलियों में.......!
बाजार ने जैसे जीना छोड़ दिया हो
किसी विरह में,या शोक में
ना मिलन होता है
ना फुसफुसाहट कहीं
बस मुंह बांधे निकल जाते है सब
जैसे  कर दिए हो घोर पाप कई
सन्नाटा तो ऐसे पसरा है
जैसी बरसों पुराने जीवन के अवशेष हो
फिर कभी खुदाई में मिलेगी 
मुस्कान  दबी हुई  फिर इन दुकानों में.....!

अंजू अग्रवाल
शिक्षिका और कवयित्री ( खेरली,अलवर)

May 30, 2020

सौदेबाज किस्मत (कहानी) saudebaaj kismat kahani

सौदेबाज किस्मत (कहानी)

कहते हैं कि कर्म रेखा के साथ भाग्य रेखा का प्रबल होना बहुत ज़रूरी है नहीं तो लाख सिर पटकते रह जाओ निराशा ही हाथ लगती है।कहानी के नायक रोहन के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा था।उम्र के तेईस बसंत देख चुके रोहन का भाग्योदय अभी तक नहीं हो पाया था।बचपन से ही उसका अपनी किस्मत के साथ छत्तीस का आंकड़ा था।पिताजी का अपने मित्र के साथ पार्टनरशिप में चमड़े का सामान बनाने का कारखाना था।उत्पादन और लाभ दोनों बहुत बढ़िया हो रहा था कि एक दिन अचानक शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग जाने से कारखाने को बहुत क्षति पहुंची और लाखों का सामान जलकर ख़ाक हो गया।कर्ज से उबरने के लिए घर गिरवी रखना पड़ा।पिताजी इस परिस्थिति को झेल नहीं पाए और मदिरा की शरण में चले गए। उसने मां को कई बार इस विषय पर बहस करते और मार खाते देखा था।मां ने भी इसे अपनी नियति मानकर चुप रहना सीख लिया।एक दिन किसी ने आकर ख़बर दी कि एक अनियंत्रित गाड़ी की चपेट में आने से पिताजी की असामयिक मृत्यु हो गई।मां पढी लिखी नहीं थी इसलिए नौकरी मिलना मुमकिन नहीं था।उन्होंने हार नहीं मानी और अगरबत्ती के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया।किसी प्रकार बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया।किसी तरह रोहन ने ग्रेजुऐशन पूरा किया।मां के अनुनय विनय करने पर उसी कारखाने में उसे सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई।यद्यपि रोहन कुछ अलग करना चाह रहा था लेकिन परिस्थिति को देखते हुए उसने नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन स्वाध्याय ज़ारी रखा।शिफ्ट की नौकरी होने के कारण वह पढ़ाई को ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था फिर भी जितना भी टाइम मिलता उसका भरपूर उपयोग करता था।छोटी बहन राधा बारहवीं क्लास में थी वह पढ़ाई के साथ साथ घर के  काम में भी हाथ बंटाया करती थी।रोहन की मां को इस बात की तसल्ली थी कि दोनों बच्चे अपनी पढ़ाई और काम में बेहतर तालमेल बिठाकर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे।
राधा ने बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और उसका चयन NEET की परीक्षा में हो गया।इसी वर्ष रोहन ने भी CAT की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उसे एक अच्छा कॉलेज भी मिल गया जिसमें बड़ी बड़ी कंपनियां प्लेसमेंट के लिए आया करती थीं।तीनों बहुत खुश थे।लेकिन ये खुशी अधिक देर नहीं टिक सकी।उनके पास इतने रुपए नहीं थे कि दोनों की फीस चुकाई जा सके।बैंक से एजुकेशन लोन के लिए एप्लाई करने गए तो वहां भी मैनेजर ने दस हज़ार रुपए बतौर सुविधा शुल्क(रिश्वत) की मांग की जो दे पाना मुश्किल था।रोहन चिंता के मारे रात भर करवटें बदलता रहा।कब नींद आई पता ही नहीं चला।सुबह मां ने कारखाने जाने के लिए उठाया।नाश्ता करते वक्त तीनों ख़ामोश थे।राधा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,"भैया,आप मेरी चिंता मत कीजिए। मैं अगले साल फिर से परीक्षा दे लूंगी।आपने तो कितनी मेहनत की है,वह बेकार नहीं जानी चाहिए।आपको कारखाने की नौकरी भी नहीं करनी पड़ेगी। मैं जानती हूं आप यह काम अपनी खुशी से नहीं करते हैं।आपकी अच्छी नौकरी लग जाएगी तो हमारी तकलीफें भी दूर हो जाएंगी।"
रोहन ने मुस्कुराकर कहा,"देखो मां,अपनी राधा कितनी सयानी हो गई है।कितनी बड़ी बड़ी बाते करने लगी है।"वह उठा और राधा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला,"पग ली,मेरे होते हुए तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।ज्यादा मत सोचो, मैं सब ठीक कर दूंगा।" वह तैयार होकर काम के लिए निकल पड़ा।वहां पहुंचकर मैनेजर से कुछ राशि एडवांस में देने की गुज़ारिश की।मैनेजर उसकी मेहनत और ईमानदारी से काफी खुश था इसलिए मान गया शाम को घर लौटा तो हाथ में मिठाई का डिब्बा था।उसने मिठाई का एक टुकड़ा निकाला और राधा के मुंह में डालते हुए बोला,"कॉलेज में एडमिशन की बहुत बहुत बधाई डॉक्टर साहिबा।" राधा ने चहकते हुए कहा,"इसका मतलब कि लोन मंजूर हो गया।रोहन ने बात बदलने का प्रयास करते हुए कहा,"अरे वह सब छोड़ो,अभी तो खुशियां मनाने का समय है।" मां और राधा दोनों का मुंह उतर गया।वे दोनों समझ गईं कि बैंक से कर्ज़ नहीं मिल सका है।मां ने तुरंत प्रश्न किया,"इतने सारे पैसों की व्यवस्था कैसे हुई?और तुम्हारे दाखिले का क्या हुआ?"रोहन ने पूरी बात बताते हुए कहा,कोई बात नहीं मां, मैं तो काम कर ही रहा हूं और फिर राधा डॉक्टर बन जाएगी तो  सोचो हमारी नाक कितनी ऊंची हो जाएगी।और फिर चाहे मैं आगे बढूं या राधा बात तो एक ही है।राधा रोते हुए भाई से लिपट गई।मां की आंखों में आंसू छलक आए।वह अच्छी तरह जानती थी कि किस्मत एक बार फिर रोहन को मात देने में सफल रही थी।
सात साल बीत गए।रोहन उसी कारखाने में मैनेजर बन गया था जिसमें वह काम किया करता था।उसकी शादी हो गई थी।राधा भी सरकारी अस्पताल में बतौर स्त्री रोग विशेषज्ञ काम कर रही थी।उसी अस्पताल में काम करने वाले सर्जन ने जब राधा से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की तो मां और रोहन सहर्ष मान गए।रोहन को अपने सात साल पहले लिए गए फैसले से कोई शिकायत नहीं थी।हां,इस बात का अफसोस तो उसे हमेशा रहने वाला था कि उसका मैनेजमेंट की पढ़ाई और मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने का सपना अधूरा रह गया था।


प्रेषक:कल्पना सिंह
पता:आदर्श नगर,बरा,रीवा(मध्यप्रदेश)
May 27, 2020

ग़ज़ल ghazal Hamid kanpuri

ग़ज़ल


सभी   को     सुनाते    रहेंगे।
नये   गीत      गाते      रहेंगे।

रिवायत      निभाते     रहेंगे।
भला   कह    बुलाते    रहेंगे।

करेंगे     सदा    ही    भलाई,
बुराई         हटाते        रहेंगे।

जुदा जो  ग़लत  फहमियों से,
गले   हम     मिलाते     रहेंगे।

रखेंगे   चमन को  चमन हम,
नये    गुल‌    खिलाते   रहेंगे।

शिकायत अगर है किसी को,
शिकायत     मिटाते     रहेंगे।

शराफत  है  पहचान  अपनी,
शराफत     दिखाते     रहेंगे।

विदाई   तुम्हारी   है   रस्मन,
बुलाते       चलाते      रहेंगे।

बुराई   से नफ़रत   जिन्हें है,
वो  रावण    जलाते    रहेंगे।

हमीद कानपुरी
अब्दुल हमीद इदरीसी
179, मीरपुर कैण्ट कानपुर-208004
May 27, 2020

विश्व जैव-विविधता दिवस vishwa jaiv vividhata divas

विश्व जैव-विविधता दिवस


   विश्व जैव-विविधता दिवस   प्रतिवर्ष 22 मई को मनाया जाता है। इसे *विश्व जैव-विविधता संरक्षण  दिवस* भी कहा जाता हैं। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ ने की थी।हमारे रोज़मर्रा के जीवन में जैव-विविधता का काफी महत्व है। इसलिए जैव-विविधता का संरक्षण बहुत जरूरी है। हमें एक ऐसे जैव विविधता सम्पन्न वातावरण का निर्माण करना है जिसमें आर्थिक गति विधियों के लिए पर्याप्त अवसर  प्राप्त हो सकें। जैव-विविधता  के कमी होने से बाढ़, सूखा तूफान आदि प्राकृतिक आपदाओं के आने का खतरा बढ़ जाता है।हमारा जीवन प्रकृति  का अनुपम उपहार है।अत: पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर,पठार,  समुद्र-नदियां इन सभी का हमें संरक्षण करना चाहिए।ये सभी हमारे अस्तित्व एवं  विकास के लिए ज़रुरी हैं। 
      29 दिसंबर 1992 को    नैरोबी में हुए जैव-विविधता सम्मेलन में *विश्व जैव-विविधता दिवस* मनाने का निर्णय लिया गया था। कई  देशों की व्यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए इसे 29 मई के स्थान पर 22 मई को  मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें खासतौर से 
-वनों की हिफाज़त, 
-संस्कृति, 
 -कला शिल्प,  
-संगीत,
-रहन सहन,
-कपड़ा
-भोजन और
औषधीय पौधों के महत्व को प्रदर्शित करके जैव-विविधता के महत्व और उसके न होने पर होने वाले  खतरात के बारेे अभियान चलाकर जनता‌ को मानसिक रूप से जागरूक किया जाता है

अब्दुल हमीद इदरीसी
फेथफुल गंज, कैण्ट,कानपुर-208004
9795772415
May 27, 2020

मेरी राजनीति सत्ता की नहीं संघर्ष की है meri rajneeti satta ki nhi sngharsh ki h

मेरी राजनीति सत्ता की नहीं संघर्ष की है


मेरी राजनीति सत्ता के लिए नहीं, संघर्ष की है ,
धर्म जात की नहीं ,मेरी चिंता ग़रीब की खाली पर्स की है ।

कैसे ग़रीबी हटाऊं जरुरत कार की नहीं , बाज़ार की है ,
पाँच साल बहुत है , कुछ ग़रीबी अभी कम कर दो,
सवाल इस साल की है ।

बिरयानी की नहीं , भूख दो रोटी की है ,
रहने के लिए एसी (AC)  नहीं, चैन से सोने के लिए
ज़रूरत दो गोटी की है ।

थके है मजदूर काम से , इनकी काम हर दिन की है ,
ज़बरदस्ती काम कैसे न करें मजदूर , चिंता पूंजीपति
की ऋण की है ।

रहने के लिए महल की नहीं , जरुरत झोपड़ी घर की है ,
शराब नहीं ले भाई , प्यास जल की है ।

ग़रीबी हमारे घर की ही नहीं , संसार की हैं ,
सत्ता की सरकार कहती :-
ग़लती हमारी नहीं , बीती हुई कई पाँच साल की है ।

ग़रीबों की मार्ग में रोशन लाना है ,
कैसे कहूं मैं, सरकार के लिए बात की नहीं, 
अब लात की जमाना है ।

 रोशन कुमार झा 
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत 
May 27, 2020

हमको स्वदेशी रोज़गार व आत्मनिर्भर बनने की ओर चलना चाहिए swadeshi rojagar or Atmanirbhar ki taraf badho

*बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान*

*हम सुरक्षित तो हमारा परिवार ओर हमारा देश सुरक्षित - विष्णु पुजारी*

*हम सब को इस महामारी से सच्चे कोरोना योद्धाओं,पुलिसकर्मियों, चिकित्सकों,सेवादारों का सम्मान व सहयोग करना है।*

*हमको स्वदेशी रोज़गार व आत्मनिर्भर बनने की ओर चलना चाहिए।*

*सालासर धाम - 27 - मई - 2020* *मरुधर भारती की विशेष रिपोर्ट*

बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान की ओर से कोरोना वायरस जैसी महामारी के बढ़ रहे प्रकोप को लेकर इस महामारी से सावधानी की अपील करते हुए सालासर धाम से विष्णु पुजारी ने अपने विचारों के माध्यम से कहा कि मित्रों, जय श्री बालाजी की।। जैसा कि आप सब जानते है कि पिछले 5, 6 माह से हम कोरोना वायरस के आतंक से ग्रसित हो रखे है। तक़रीबन 3 माह से इस महामारी ने हमारे भारत देश को पूरी तरह से हिला कर रख दिया है। हमारी अर्थव्यवस्था के साथ साथ हर एक व्यक्ति सामाजिक,आर्थिक,मानसिक इत्यादि क्षेत्रों में अवसादग्रस्त हुआ है। देश के हर एक नागरिक ने (किसी ने छोटी तो किसी ने बड़ी) अपने - अपने कर्तव्यों का पालन किया है,जिसके लिए मैं देश के हर एक नागरिक का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।
मित्रों,जैसा कि आप सब जानते हो कि कोविड19 का चौथा चरण शुरू हो चुका है। ये बात तय है कि जैसे ओर बहुत सी बीमारियों के साथ हम जीवन यापन कर रहे हैं,वैसे ही हमको इस कोरोना जैसी महामारी को भी साथ लेकर ओर इस महामारी से लड़ते हुए चलना है। इस चरण में बहुत से स्थानों पर लोगों को अपने अपने कार्य को शुरू करने और अति आवश्यक सेवाओं को जन जन तक पहुँचाने का आदेश केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा जारी किया गया है। जहाँ इस बीमारी का प्रकोप कम है ये सुविधा केवल उन्हीं स्थानों पर दी गई है।
अतः मित्रों मैं आप सब से अपील करता हूँ कि अब समय है सयंम ओर शांति का। आओ हम सब ये शपथ ले कि 3 माह में हम सब ने जो देश हित मे सेवा दी है उसको व्यर्थ नही जाने देंगे। जब तक इसका सम्पुर्ण इलाज़ सम्भव नही हो जाता तब तक हमको इसके लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशो की पालन करनी होगी। मित्रों कोरोना का संक्रमण अभी भी तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाए रखें। इससे आप कोविड-19 और अन्य प्रकार के संक्रमण की चपेट में आने से बचे रह सकते हैं।
इसके साथ-साथ हम सब को इस महामारी से सच्चे कोरोना योद्धाओं,पुलिसकर्मियों, चिकित्सकों,सेवादारों का सम्मान व सहयोग करना है। मित्रों एक बात और कि कोरोना वायरस से उपजी महामारी भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था को पहले जैसी स्थिति में करने की धमकी दे रही है। इसके लिए हमको स्वदेशी रोज़गार व आत्मनिर्भर बनने की ओर चलना चाहिए।
आप सब भारत देश के ज़िम्मेदार नागरिक हो इसके साथ साथ आप अपने परिवार और समाज की जरूरत भी हो। देश हित के साथ साथ आपको अपने बुजुर्गों, बच्चों के लिए अभी बहुत सी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करना है।
*"हम सुरक्षित तो हमारा परिवार ओर हमारा देश सुरक्षित"* इसी धारणा के साथ सावधान रहें और सतर्क रहें।

*जय श्री बालाजी की*
*विष्णु पुजारी*
*सालासर बालाजी धाम, सालासर*
*बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान*
May 27, 2020

ज़िन्दगी में ऐसी बाधा , jindgi me aesi bandha

ज़िन्दगी में ऐसी बाधा ,

आई मेरी ज़िन्दगी में ऐसी बाधा ,
बिछुड़ गयी मेरी ज़िन्दगी की पूजा पाठ व राधा ।

अब कैसे होगी मेरी गुज़ारा , हां मेरी गुज़ारा ,
अब कौन मुझको देगा अपना सहारा , हाँ अपना सहारा ।

ऐसा हाल होता इश्क में मैंने जाना ही नहीं ,
अब मैं क्या करूं , वह लड़की मुझे पहचाना ही नहीं ।

जिस पर लुटाये हम इतना प्यार ,
अब वह रखती है किसी और की ख्याल ।

अब मौत की हालात दिखती है , हमें रेल लाइन पर ,
हां लाइन ,
क्या करूं वहां जाने पर भी लगेगी फाइन, हां फाइन ।

मौत होगी मेरी देखेगी ज़हान ,
कब नेहा आयेगी मेरी मौत की वर्षा आंधी , तूफान ।

आ जा मेरी मौत , मैं तुझको पुकारा , हां पुकारा ,
अब मैं तेरे ही साथ करूंगा गुजारा , हां गुज़ारा ।

मेरी होंठों की मुस्कान को वह लड़की उजाला, हां उजाला ,

हाय ! मैं अपनी ज़िन्दगी को क्या कर लिया ,
बेवफ़ाई की दुनिया में अपने को जला लिया ।

मेरी आधी मौत में हो रही है दर्द ,
उस लड़की को कहां रहा , मेरे ऊपर कद्र हां कद्र ।

हाय । यह ज़िन्दगी मेरे साथ क्या हुआ ,
मेरी जोड़ी बिछुड़ने में किसकी लगी दुआ ।

उसके अलावा मैं किससे करूं प्यार ,
इस निकम्मे ज़िन्दगी में रोशन को छोड़ दिया, अपना
दोस्त यार, हां दोस्त यार ।

® रोशन कुमार झा 
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
May 27, 2020

सियालदह जयनगर की यात्रा siyaladah jaynagar ki yatra

सियालदह जयनगर की यात्रा

सियालदह जयनगर गंगासागर की यात्रा ,
मिथिला घूमने के लिए नहीं देखनी पड़ती है पतरा ।

सियालदह में 13185 गंगासागर एक्सप्रेस पर बैठी ,
विधाननगर, दमदम, होते हुए आ गये नैहाटी  ।

नैहाटी में देखें एक छोटा सा गैस सिलेंडर ,
आ गये गरीफा होते हुए हुगली, गंगा नदी पार बैण्डेल ।

बैण्डेल में हुई खान पान ,
आ गये हावड़ा मेन लाइन होते हुए बर्द्धमान ।

बर्द्धमान के लोकल ट्रेन से होते गये दूर ,
न जाने कैसे एक ही बार में पहुंच गए दुर्गापुर ।

दुर्गापुर में हम रोशन पूछे समोसा का मोल ,
खाते - खाते रानीगंज होते हुए आ गये आसनसोल ।

गांव जाने की उल्लास से होंठों पर मुस्कान ली ,
उसके बाद आ गई जे.सी.डी ‌।

जे.सी.डी में खरीदें बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए फूल ,
इस तरह आ गये मधुपुर ‌।

मधुपुर में हमको बोला गया राजा ,
इस तरह हम झा आ गये झाझा ‌।

झाझा किऊल में लगी हमारी कविता की परीक्षा होनी ,
सिमरिया घाट, राजेन्द्र पुल कवि दिनकर जी के गांव
होते हुए हम आ गये बरौनी ।

बरौनी से घर रहा न दूर ,
आ गये समस्तीपुर ।

समस्तीपुर में झाड़े पेन्ट और अंगा ,
आ गये अपना मिथिला के दरभंगा ।

दरभंगा में देखें पेड़ पौधा और बकरी ,
आ गये सकरी ।

सकरी में मुलाक़ात हुआ वह आदमी रहा धनी ,
विश्व में मशहूर है अपना पेंटिंग ,आ गये पण्डौल
होते हुए हम मधुबनी ।

मधुबनी से भी जा सकते रहे अपना घर ,
लेकिन चल गये हम राजनगर ।

राजनगर में हम पीये न शराब , पीये जल ,
आ गये खजौली होते हुए हम सियालदह से जयनगर ।

मधुबनी में गये मुंह हाथ धोने गंगासागर घाट पर ,
बस पकड़े कुछ ही देर में उतार दिया हमको लोहा हाट पर ।

लोहा में रिक्शावाला को बोले चलो जी ,
पहुंचा दिया हम को अपना गांव झोंझी ।।

 रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
May 27, 2020

भक्त हूं वीर हनुमान का bhakt hu vir hanuman ka

भक्त हूं वीर हनुमान का


भूख है ज्ञान का ,
परवाह है न जान का ।
राह रोशन है , चिंता है ना मान और सम्मान का ,
हमेशा खुश रहता हूं , क्योंकि मैं भक्त हूं वीर हनुमान का ।।

नशा है न कनक , धतूरा, पान का ,
भूखा हूं मंगल गान का ।
कैसे वर्णन करूं भगवान का ,
बड़ी सुख-सुविधा मिलती , सिर्फ जपता हूं 
राम भक्त नाम हनुमान का ।।

सहायक हूं जवान का ,
दर्द जानता हूं मजदूर किसान का ।
हवा में रहता हूं, पर डर रखता हूं तूफान का ,
समंदर की तरह अपने आप में बहता हूं 
क्योंकि मैं सेवक हूं वीर पुत्र हनुमान का ।।

इंतजार रखता हूं न संतान का ,
पत्नी तक स्वार्थी होती , धन - दौलत क्या करूंगा
आवश्यकता है मुझे दो मुट्ठी धान का ,
और नश्वरता की प्राण का ,
जब तक मैं जिंदा रहूं , तब तक जपते रहूं नाम
वीर हनुमान का ।।

* ® रोशन कुमार झा 
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
May 27, 2020

महाराणा प्रताप" पर कविता ज्योति कँवर चौहान Maharana pratap

शीर्षक :- "महाराणा प्रताप"


तेज कटिलो, तलवार कटीली
भाला री वा नोंक हाल कटीली
महाराणा री हुँकार कटीली
मेवाड़ी आण री झंकार कटीली

उगते सूरज आड़ावाल चमके
हाल वो भाटो भाटो धधके
ऊबे घोड़े बहलोल ने
दो फाड़ काटियो
हाल वा तलवार री धार छळके

मुगलां रा छाया वादलां में
सूरज एक गर्विलो थो
चेतक री टापों संग
स्वाभिमान जगातो
राणो वो हठीलो थो

वन देख्या
मगरा देख्या
महल छूट्या, चित्तौड़ छूटीयो
पण छूटी नि वा आण निराली
घुटणा टूटे, हाथ कटे पण
माथो झुके ओ मंजूर नहीं
माथो झुके ओ मंजूर नहीं...।।

@ज्योति कँवर चौहान (अध्यापिका)
सुमेरपुर, पाली, राजस्थान
May 27, 2020

मकड़ जाल makad jaal

मकड़ जाल


ये मकड़ जाल अक्सर मेरे साथ
लुका छिपी खेला करते है.........

गर्द को भर अपने गर्भ में
गंदगी का आलम लिए
भित्तियों की ओट में दुबक
अपनी पहचान छुपाया करते है ..........

अशुद्धता की चरम सीमा पर 
पहुंच छत पर आशियाना बना
गृह शोभा को ग्रहण लगा
सदन पर साम्राज्य किया करते है ..........

कीटों को पनाह देकर
पट के किनारे लगा धूल को
कोनों में,स्तंभों के जोड़ में
ज्यामिति आकृतियां बनाया करते है.......

लूतिका अपने शिरोवक्ष से
कीटों को आमंत्रित कर
उदर की भूख को मिटाने
रेशमी जाल बुना करते हैं.......

अपने विष से हमें डरा
दूर रहने की सलाह देकर
बुहारी को अपना रिपु बना
अक्सर हमसे गुथा करते हैं.......

आगोश में अपने कीटों को लिए
शिकारी दृष्टि उन पर गढा
घर को सूना छोड़ने की
हमसे चेष्टा किया करते हैं........

माताजी की डांट से बचने 
सफाई का धर्म निभाते हुए
इतनी शिद्दत से बनाए घर को
हम अक्सर उजाड़ दिया करते हैं.......

ये मकड़ जाल अक्सर मेरे साथ
लुका छिपी खेला करते हैं........

पट- दरवाजा 
लूतिका - मकड़ी
बुहारी- झाड़ू

🖊अंजुल
अंजू अग्रवाल (खेरली,अलवर) [शिक्षिका और कवयित्री]
May 27, 2020

ग़ज़ल आकिब जावेद ghazal aakib javed

ग़ज़ल

ज़िन्दगी क्यों बुझी सी रहती है
आँख में कुछ नमी सी रहती है

गुमशुदा सी कहीँ ख़्यालों में
ज़िन्दगी अजनबी सी रहती है

बेवफ़ा ज़िन्दगी में क्या आई
ज़िन्दगी में कमी सी रहती है।

आह दिल की मेरी भी सुन लेती
देख के देखती सी रहती है

कुछ खुला सा है मेरे भी दिल में
रौशनी बाँटती सी रहती है

ज़िन्दगी के सवाल हल करते
ज़िन्दगी यक-फनी सी रहती है

सोच का फ़र्क होता है आकिब'
दिल में तो तिश्नगी सी रहती है

आकिब जावेद
May 27, 2020

कोरोना काल में पनपता डर। corona kal me panapata dar

कोरोना काल में पनपता डर


          लगभग 2.5 महीनों से पूरे भारत वर्ष के लोग लॉक डाउन के बीच अपना समय व्यतीत कर रहा है।हर व्यक्ति अपने घर में किसी ना किसी तरीके से कोरोना के इस संकट के समय इस समय को बिताने का प्रयास कर रहा है।लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रकृति एक अलग सी की दिशा की तरफ बढ़ रही है।
          12 अप्रैल,13 अप्रैल और 10 मई को लगातार अलग-अलग तीव्रता के भूकंप के झटके महसूस किए गए। तीव्रता ज्यादा हो या कम हो,लेकिन अगर इसका केंद्र धरती में ज्यादा नीचे ना हो और ऊपर हो तो वह अत्यंत भयावह स्थिति सारे भारत के लिए बन सकती है।

          पिछले एक माह से ना जाने प्रकृति किस विनाश की ओर इशारा कर रही है और बार-बार बारिश का औलो के साथ होना।एक अलग ही डर का माहौल पैदा कर रहा है।वहां मौसम विभाग इन सारी परिस्थितियों को सामान्य बता कर ऐसा लग रहा है कि लोगों का मन बहला रहा है। लगाकर आ रहे भूकंप और बिन मौसम वाली बरसात से मन को भयभीत करने वाली अवस्था हर व्यक्ति की होती जा रही है।

          आमतौर पर व्यक्ति जब घर से बाहर जाता था और अपने काम पर लग जाता था तो उसे कभी-कभी आए भूकंप के झटकों का पता भी नहीं चलता था।किंतु घर में रहकर अब वह इन्हें ज्यादा महसूस कर रहा है और स्थिति ऐसी हो गई है कि ना तो घर में रहा जाता है और ना बाहर जा सकता है।

          लगातार समाचार चैनलों पर भूकंप ,कोरोना, मजदूरों के पलायन की न्यूज़ तो चलती ही रहती है।वहीं एम्स हॉस्पिटल के निर्देशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया जी के एक ताजा ब्यान के मुताबिक आने वाले माह जून जुलाई में तो कोरोना की स्थिति और भी भयानक होगी।लीजिये लोगो के डर को बढ़ाने में ऐसे लोगो का सहयोग बहुत ही दुखद लगता है।

          जहां हर व्यक्ति इन भूकंपो से और बारिश का बिन मौसम ओलो के साथ पड़ने से परेशान हैं।वही भारत का एक बड़ा तबका,हमारा एक आम मजदूर एक जगह रह कर अपना भरण-पोषण नही कर पा रहा है।लगभग सभी मजदूर दूर-दूर राज्यों से आकर दिल्ली नोएडा और गुड़गांव जैसे विकसित राज्यों में रहकर अपने घर का और अपना भरण-पोषण कर रहे थे।लेकिन कोरोना काल में लगातार उनकी हालत खराब हो रही है।उन्होंने अब बिना अपनी जान की परवाह किए बगैर वापस अपने घर लौटना शुरू कर दिया है।

         परिस्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि गर्भवती महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे भी लगातार चलने के लिए मजबूर हैं।जहां एक और सभी राज्यों की सरकार सभी मजदूरों के लिए खाने पीने की व्यवस्था का दावा करती हैं।वही मजदूरों की स्थिति लगातार डर के माहौल के कारण एक जगह ना रुकने की हो गई है और वह जल्दी से चाहते हैं कि किसी तरीके से अपने घर पहुंचे और अगर उन्हें मरना ही है तो अपने घर जाकर मरे।

          कोरोना काल के शुरू से ही  लगातार लोग 2 ग़ज़ की दूरी और बार बार हाथ धोते रहने की बातों को मन से निभा रहे है।सभी लोग अपने आसपास के लोगों का और खुद का ख्याल भी रख रहे है।हर व्यक्ति इस बात को पालन कर रहा है।लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ रहै है।आम आदमी की मनोस्थिति खराब होती जा रही है।

          घर बैठे बैठे कमाई के सारे जरिए खत्म हो जाए और खर्चों का लगातार अपनी जगह बने रहना आम आदमी को डराने की स्थिति में ले आया है।पर लगता है अब कोई कुछ भी कर ले।उनको तो कोरोना के मरीजों की बढ़ने की अवस्था में ही जीने की आदत डालनी होगी।शायद यह बात अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी समझ में आने लगी है।

          पिछले कुछ दिनों से कई राज्यों के मुख्यमंत्री कुछ इस तरीके से न्यूज़ चैनलों पर अपना बयान देने लगे हैं।जिससे लग रहा है कि लॉक डाउन तो कोरोना के रहते रहते ही खोलना पड़ेगा और लोगों को भी अब अपना और दूसरों का ध्यान खुद ही रखना होगा।लोगों को अब ना केवल अपना ध्यान रखना होगा।बल्कि दूसरों का भी ध्यान रखना होगा।

          लॉक डाउन खोलने के बाद सभी को मास्क लगाकर लगातार 2 गज की दूरी रखकर ही लोगों से मिलना जुलना होगा।जिससे वह अपने और अपने मित्रों की रक्षा कर सकें। कोरोना काल में अपने कार्य को करते रहते हुए यदि अपनी कमाई के साधनों को भी बनाए रखना है,तो 2 गज की दूरी का लगातार पालन करना होगा।

           कोरोना की इस बीमारी ने एक चीज तो लोगों को समझा दी है कि अब अपने बारे में ही लगातार सोचने से आप जिंदा नहीं रह सकते।यदि आपको जीवन में आगे बढ़ना है तो दूसरों का भी ख्याल उसी तरह करना होगा।जिस तरह आप अपना और अपने परिवार का रखते हैं उसी तरह सभी का ख्याल रखना होगा।तभी यह प्रकृति और हमारा भारतवर्ष सुरक्षित रहेगा।

          अंत में एक निवेदन के साथ ये लेख खत्म करता हूँ कि दूसरों की सुरक्षा को अपनी सुरक्षा मानेंगे तभी आप जी पाएंगे वरना आज कोरोना और ना जाने कल भविष्य में क्या-क्या झेलना पड़ेगा।अब खुद जीयो और दुसरो को भी जीने दो शब्दो का पालन दिल से करना होगा।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
May 27, 2020

मुसाफिर हूँ यारों musafir hu yaaro

मुसाफिर हूँ यारों


          लगातार मजदूरों के पलायन की बातें सुन सुनकर और टीवी, व्हाट्सएप जैसे बहुत से माध्यमों के द्वारा बड़ी ही दुखदाई फोटो देख-देख कर मन बहुत ज्यादा व्यथित हो रहा था।सोच रहा था क्यों ना कुछ मजदूरों के पास जाकर उनकी स्थिति को जाना जाए।

          मन के कोतुहल को मिटाने के लिए मैंने इन लोगो के बीच जाकर इनकी स्थिति को समझने का कुछ प्रयास किया।सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी करना था और किसी भी तरीके से अपने आप को और दूसरे लोगो को भी कोरोना कि बीमारी से बचाया जाए।इसी विचार के साथ अपने सबसे निकट हाईवे पर पहुँचकर कुछ मजदूरों की परिस्थिति का जायजा लिया।

          मैं अपने घर से निकल कर मेरठ रोड की तरफ चल पड़ा।अभी गाजियाबाद से थोड़ी दूरी पर आया ही था।सिहानी चुंगी के पास से एक मजदूरों की अपार भीड़ देखकर कुछ घबराहट सी महसूस हुई।पलायन करने वाले मजदूरों को मैं प्रवासी नहीं कहूँगा।अपने ही देश में इस तरीके का नाम पाने का शायद उन्हें अर्थ भी नहीं पता होगा।

          मजदूर अकेले नहीं जा रहे थे।छोटे छोटे मासूम बच्चे भी उनके साथ जा रहे थे।वो बच्चे जो मजदूरी नहीं करते हैं।वो अपने मेहनती माता पिता के पूरे दिन मेहनत करने की वजह से स्कूल में पढ़ते है।चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट हो लेकिन जैसे तैसे अपनी पढ़ाई कर रहे थे।

          सफर की थकान से लिप्त ऐसे ही लगभग 30-32 साल के एक युवक से मैंने पूछा भैया तुम लोग इतना पैदल चलकर जा रहे हो।यह जो बच्चे तुम्हारे साथ हैं।कौन-कौन सी कक्षा में पढ़ते हैं।वह मजदूर इतना भी नहीं बता पाया कि उसके बच्चे कौन सी कक्षा में पढ़ते हैं।उसने कहा भैया मैं इतनी मेहनत करता हूँ।कि मैं अपने बच्चो को पढ़ा सकूं।बस इसी लगन से 12-14 घंटे किसी ना किसी काम पर लगा रहता हूँ और रात को थक कर सो जाता हूँ।कक्षा का तो मैं बता नही पाऊँगा।बस इस बात की खुशी थी कि मेरे बच्चे पढ़ रहे है।

          अब मेरा मन पहले से भी ज्यादा व्यथित हुआ।वह छोटे-छोटे बच्चे जिनके लिए वह मेहनत कर रहा है ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो जाए।उसे पता भी नहीं कि वह कौन सी कक्षा में पढ़ रहे हैं।शायद इतने घंटे की मेहनत के बाद वह इस तरह बेसुध हो कर सो जाता है कि उसे पता ही नहीं चलता कि कब नींद आई और कब रात गई।

          खैर इन को छोड़कर मैं थोड़ा सा आगे निकला और आगे जाकर मैं एक औरत से मिला।जिसके दो बच्चे थे लगभग दोनों बच्चों के बीच में 1 साल का फर्क था एक 4 साल का और एक लगभग 5 साल का होगा।एक बच्चे को गोद में लिए हुए थी और दूसरा उसके साथ पैदल पैदल चल रहा था।जब पैदल चलने वाला बच्चा थक जाता था तो वह पहले को नीचे छोड़ दूसरे को उठा लेती थी।इसी तरह उन्हें अदल बदल कर अपना सफर तय कर रही थी।

          मैंने उससे पूछा इस तरह कब तक कल चलोगे।तुम्हारा पति कहां है, एक बच्चे को वह क्यों नहीं पकड़ता है। तब उस औरत ने अपने पति की तरफ इशारा करते हुए बताया।कि वह जा रहे मेरे पति जिनके सर पर एक भारी सा बक्सा है।जिस तरीके से भारी बक्सा लिए वो चला जा रहा था उसके लिए बच्चे को उठाना नामुमकिंन था।उसे देखकर मुझसे और कुछ पूछा ही नही गया और मैं दुखी मन से आगे चल पड़ा।

          आधे घंटे के सफर में मुझे बहुत ही प्यास लगने लगी।मैंने अपनी गाड़ी से ठंडी पानी की बोतल उठाई और पानी पीना शुरू किया।अचानक मेरी नजर एक बच्चे की तरफ गई।जो मेरठ रोड पर स्थित पीएनबी बैंक के प्याऊ वाले नल से पानी पी रहा था। मन किया गाड़ी वहां छोड़कर उसी पानी को पीकर देखा जाए।जैसे ही मैंने  उस नल खोला।उसमें से एक दम गरम पानी आया।मेरी उसे पीने की हिम्मत ही नहीं हुई।जिस पानी को को वो बच्चे आराम से पी रहे थे।

          इस बीच जगह-जगह मुझे रास्ते में कुछ लोग भी दिखाई दिए।जो कुछ खाने के पैकेट लेकर इन लोगों की सहायता भी कर रहे थे।लेकिन वह सहायता इतनी नहीं थी कि सभी मजदूरों की भूख को खत्म कर सकें। जिसको जहां-जहां जो भी कुछ मिल रहा था।बस वह अपना उससे ही पेट भर कर आगे बढ़ रहा था।मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि इस तरह ये लोग कब तक चलेंगे।जहां तक देख रहा था बस मजदूर ही मजदूर नजर आ रहे थे।

           उनके साथ छोटे-छोटे मासूम बच्चे बस अपनी धुन में अपने मां-बाप के पीछे पीछे चले जा रहे थे।उन्हें ना किसी मंजिल का पता था ना यह पता कितना और चलना होगा।बस यह पता था कि अपने मां-बाप के पीछे पीछे चलना है और वह मां-बाप भी अपनी पूरी ताकत से अपनी मंजिल की तरह जल्दी पहुँचना चाह रहे थे।

          अपने मन की जिज्ञासा में आकर मैंने एक बुजुर्ग से पूछा कि क्या घर जाकर खाना पीना मिल जाएगा और इस बीमारी से बच जाओगे।उस बुजुर्ग की आंख में एक आशा दिखाई दी और जुबां पर एक बड़ा ही पॉजिटिव जवाब था।ये तो नहीं पता वहां खाना मिलेगा या इस बीमारी से बचेंगे।लेकिन अपने लोगों के बीच में जाकर कुछ दर्द तो दूर हो जाएंगे।उसकी इस बात से मन निशब्द हो गया।

          यहीं से मैंने वापसी आने का फैसला किया।मन में एक दुख यह भी था।इस पूरे रास्ते में कोई भी सरकारी वाहन,बस या टेंपो मुझे उनकी सहायता करता हुआ दिखाई नहीं दिया।मैं इन सभी लोगों को अपने मंजिल की ओर बढ़ता हुआ छोड़कर वापसी अपने घर की तरफ चल पड़ा।

          लगभग 1 घंटे तक मैंने इन लोगों से विचार-विमर्श किया और पाया कि इतनी निराशा के बीच भी इन लोगों को एक विश्वास था कि वे जल्द से जल्द अपने घर से पहुंच जाएंगे और अपने लोगों से मिल ही लेंगे।शायद छोटे-छोटे बच्चे जो बीच में ही पढ़ाई छोड़ आए हैं वह बाद में पढ़ लेंगे।अगर जिंदा रहे तो वापसी जरूर करेंगे,क्योंकि बड़े बड़े शहरों में रह रहे लोगो को इनकी जरूरत हो या ना हो लेकिन ये लोग कल भी इसी उम्मीद में गांव से शहरों की तरफ आए थे,कि इनके बच्चे पढ़ लिख कर जीवन में आगे बढ़ सकें।इन सबके बीच मैंने बस यही अनुभव किया कि भारत मे सरकारे आएंगी और जाएंगी लेकिन इन लोगो का समय ना बदला है और ना ही बदलेगा।बस ये लोग अपने जीवन की अच्छी कल्पना की उम्मीद में जीवन भर चलते ही रहेंगे।

नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001